गर ख़ुदा है ख़ुदा, सुन ले तू ये सदा
माफ़ करना मुझे, पर बता है कहाँ
ढूँढा तुझे हर जगह, ना मिला तू ख़ुदा
गर ख़ुदा तू है खुदा, सुन ले तू ये सदा
मंदिर मे गया, मस्जिद मे गया, ढूँढा तुझको गिरजा घर में
उपदेश सुने, पूजा भी करी, किया जगह जगह मैने सजदा
पर भूल गया मैं ये सृष्टी.....
पर भूल गया मैं ये सृष्टी, हर कण मे तू है बसा
गर ख़ुदा है ख़ुदा, सुन ले तू ये सदा
बड़े दान किए, एहसान किए, किए दिखा दिखा मैने तीरथ
ढूँढा तुझको यूँ जगह जगह, देखा नहीं अपने भीतर
सच भूल गया हूँ मैं करुणा.....
सच भूल गया हूँ मैं करुणा, निष्ठा, प्रेम और दया
गर ख़ुदा है ख़ुदा, सुन ले तू ये सदा
माफ़ करना मुझे, पर बता है कहाँ
ढूँढा तुझे हर जगह, ना मिला तू ख़ुदा
गर ख़ुदा है खुदा, सुन ले तू ये सदा
सुन ले तू ये सदा
सुन ले तू ये सदा...
Sunday, March 21, 2010
मन मारी मझधार
मन मारी मझधार हूँ मैं
बेबस और लाचार हूँ मैं
दूर शिखर से पिघल मैं निकली
कटती बटती गिरती बहती
सात समंदर पार हूँ मैं
मन मारी मझधार हूँ मैं
काश जो होती स्रोत निकट मैं, बनती धारा उस जल की
जिसमें धूलि मात्र भूमि की, चाहे बाधा पल पल की
शायद मेरी नियती यही पर
दुविधा में हर बार हूँ मैं
मन मारी मझधार हूँ मैं
वश में नहीं है दिशा ये मेरे, दूर निकल मैं आई हूँ
मैं ही नहीं पर और हैं मेरे, संग जो अपने लाई हूँ
लहरें, झरने, खेलें, खनकें
उनका तो आधार हूँ मैं
मन मारी मझधार हूँ मैं
खड़ा किनारे तकते तकते, छन्द जो मुझ पर बोल रहा है
कथा मेरी पर भावुक हो कर, अर्थ जो अपना खोज रहा है
प्रवासी हैं कहते उसको
उस जीवन का सार हूँ मैं
मन मारी मझधार हूँ मैं
मन मारी मझधार हूँ मैं
बेबस और लाचार हूँ मैं
दूर शिखर से पिघल मैं निकली
कटती बटती गिरती बहती
सात समंदर पार हूँ मैं
मन मारी मझधार हूँ मैं
बेबस और लाचार हूँ मैं
दूर शिखर से पिघल मैं निकली
कटती बटती गिरती बहती
सात समंदर पार हूँ मैं
मन मारी मझधार हूँ मैं
काश जो होती स्रोत निकट मैं, बनती धारा उस जल की
जिसमें धूलि मात्र भूमि की, चाहे बाधा पल पल की
शायद मेरी नियती यही पर
दुविधा में हर बार हूँ मैं
मन मारी मझधार हूँ मैं
वश में नहीं है दिशा ये मेरे, दूर निकल मैं आई हूँ
मैं ही नहीं पर और हैं मेरे, संग जो अपने लाई हूँ
लहरें, झरने, खेलें, खनकें
उनका तो आधार हूँ मैं
मन मारी मझधार हूँ मैं
खड़ा किनारे तकते तकते, छन्द जो मुझ पर बोल रहा है
कथा मेरी पर भावुक हो कर, अर्थ जो अपना खोज रहा है
प्रवासी हैं कहते उसको
उस जीवन का सार हूँ मैं
मन मारी मझधार हूँ मैं
मन मारी मझधार हूँ मैं
बेबस और लाचार हूँ मैं
दूर शिखर से पिघल मैं निकली
कटती बटती गिरती बहती
सात समंदर पार हूँ मैं
मन मारी मझधार हूँ मैं
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