tag:blogger.com,1999:blog-91852333919549557492024-02-20T01:19:38.847-08:00प्राण किरतानी - हिन्दी राइटर्स गिल्डप्राण किरतानी - हिन्दी राइटर्स गिल्डhttp://www.blogger.com/profile/05257629023588715640noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-9185233391954955749.post-46060893112679604992010-03-21T18:15:00.000-07:002011-08-24T07:12:35.875-07:00गर ख़ुदागर ख़ुदा है ख़ुदा, सुन ले तू ये सदा
<br />माफ़ करना मुझे, पर बता है कहाँ
<br />ढूँढा तुझे हर जगह, ना मिला तू ख़ुदा
<br />गर ख़ुदा तू है खुदा, सुन ले तू ये सदा
<br />
<br />मंदिर मे गया, मस्जिद मे गया, ढूँढा तुझको गिरजा घर में
<br />उपदेश सुने, पूजा भी करी, किया जगह जगह मैने सजदा
<br />पर भूल गया मैं ये सृष्टी.....
<br />पर भूल गया मैं ये सृष्टी, हर कण मे तू है बसा
<br />
<br />गर ख़ुदा है ख़ुदा, सुन ले तू ये सदा
<br />
<br />बड़े दान किए, एहसान किए, किए दिखा दिखा मैने तीरथ
<br />ढूँढा तुझको यूँ जगह जगह, देखा नहीं अपने भीतर
<br />सच भूल गया हूँ मैं करुणा.....
<br />सच भूल गया हूँ मैं करुणा, निष्ठा, प्रेम और दया
<br />
<br />
<br />गर ख़ुदा है ख़ुदा, सुन ले तू ये सदा
<br />माफ़ करना मुझे, पर बता है कहाँ
<br />ढूँढा तुझे हर जगह, ना मिला तू ख़ुदा
<br />गर ख़ुदा है खुदा, सुन ले तू ये सदा
<br />सुन ले तू ये सदा
<br />सुन ले तू ये सदा...
<br />
<br />
<br />
<br />प्राण किरतानी - हिन्दी राइटर्स गिल्डhttp://www.blogger.com/profile/05257629023588715640noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-9185233391954955749.post-15983921695449926682010-03-21T18:03:00.000-07:002010-03-21T18:10:40.066-07:00मन मारी मझधारमन मारी मझधार हूँ मैं<br />बेबस और लाचार हूँ मैं<br />दूर शिखर से पिघल मैं निकली<br />कटती बटती गिरती बहती<br />सात समंदर पार हूँ मैं<br />मन मारी मझधार हूँ मैं<br /><br />काश जो होती स्रोत निकट मैं, बनती धारा उस जल की<br />जिसमें धूलि मात्र भूमि की, चाहे बाधा पल पल की<br />शायद मेरी नियती यही पर<br />दुविधा में हर बार हूँ मैं<br />मन मारी मझधार हूँ मैं<br /><br />वश में नहीं है दिशा ये मेरे, दूर निकल मैं आई हूँ<br />मैं ही नहीं पर और हैं मेरे, संग जो अपने लाई हूँ<br />लहरें, झरने, खेलें, खनकें<br />उनका तो आधार हूँ मैं<br />मन मारी मझधार हूँ मैं<br /><br />खड़ा किनारे तकते तकते, छन्द जो मुझ पर बोल रहा है<br />कथा मेरी पर भावुक हो कर, अर्थ जो अपना खोज रहा है<br />प्रवासी हैं कहते उसको<br />उस जीवन का सार हूँ मैं<br />मन मारी मझधार हूँ मैं<br /><br />मन मारी मझधार हूँ मैं<br />बेबस और लाचार हूँ मैं<br />दूर शिखर से पिघल मैं निकली<br />कटती बटती गिरती बहती<br />सात समंदर पार हूँ मैं<br />मन मारी मझधार हूँ मैंप्राण किरतानी - हिन्दी राइटर्स गिल्डhttp://www.blogger.com/profile/05257629023588715640noreply@blogger.com1